समूचे भारत में इस साल का आखिरी चंद्र ग्रहण 8 नवंबर को था इसको देखने के लिए पूरे भारतवर्ष के लोग उत्सुक थे। समूचे भारतवर्ष में इस चंद्र ग्रहण के दौरान यह मान्यता है कि सभी धार्मिक स्थल बंद कर दिए जाएंगे और मंदिरों के कपाट भी गिरा दिए जाएंगे। कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि आखिर किस वजह से यह कदम उठाया जाता है क्योंकि ऐसा पौराणिक काल से होता आ रहा है जब सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के दौरान मंदिरों के द्वार को बंद कर दिया जाता है और भगवान की मूर्ति को छिपा दिया जाता है। आइए आपको बताते हैं चंद्र ग्रहण के दौरान आखिर किस वजह से मंदिरों के द्वार को बंद कर दिया जाता है।
चंद्र ग्रहण के दौरान बंद कर दिए जाते हैं मंदिर के द्वार
चंद्र ग्रहण के दौरान ऐसी कई मान्यताएं हैं जिनका आज भी हिंदू धर्म के लोग पालन करते नजर आते हैं। हालांकि कई लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है और कुछ इसी तरह की मान्यताओं में से एक है चंद्र ग्रहण के दौरान मंदिरों का बंद होना। सिर्फ चंद्रग्रहण ही नहीं बल्कि किसी भी प्रकार के ग्रहण के दौरान मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और देवी देवताओं को छिपा दिया जाता है जिसका पूरा मतलब तो किसी को नहीं पता लेकिन आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे आखिर किस वजह से ग्रहण के दौरान ऐसा किया जाता है। आइए आपको बताते हैं इस साल लगने वाले आखिरी चंद्र ग्रहण के दौरान भी आखिर क्यों मंदिरों के सभी कपाट को बंद कर दिया गया था और ग्रहण के समाप्त होते ही क्यों फिर से देवी-देवताओं के कपाट को खोल दिया गया।
चंद्र ग्रहण के दौरान इस वजह से बंद कर दिए जाते हैं मंदिर के कपाट
चंद्र ग्रहण साल 8 नवंबर को समूचे भारतवर्ष में देखा गया। हर ग्रहण की तरह इस ग्रहण के दौरान भी सभी धार्मिक स्थल को सूतक काल के लिए बंद कर दिया गया जिसका कारण बहुत कम लोगों को ही पता है। दरअसल मान्यता यह है कि जब भी किसी प्रकार का कोई ग्रहण लगता है उस दौरान दैवीय शक्ति कमजोर पड़ जाती है और जब ग्रहण का प्रभाव जैसे जैसे बढ़ता जाता है तब असुरी शक्तियां और भी ज्यादा ताकतवर होती जाती है और यही वजह है कि असुरी शक्तियों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए देवी देवताओं को कुछ देर के लिए पर्दे में रख दिया जाता है और जैसे ही ग्रहण का समापन होता है तब एक बार फिर से देवी-देवताओं को जागृत करने के लिए आरती की जाती है।